Monday 25 December 2017

कविता- लोर झरे लगल तs झरते रहल / भागवतशरण झा 'अनेमेष'

लोर झरे लगल ..! 
 कवि- भागवतशरण झा 'अनिमेष '

लोर झरे लगल तs झरते रहल
रात तीतल सिहर कs हो रामजी

मोन बाछा अनेरुआ हहरइत रहल
हाल बेहाल बेधलक हो रामजी

नाम जेकरा हम जब तब जपते रही
हमरा छोरलक छमककs हो रामजी

बयना तकलीफ के हमरा सुख से मिलल
तइयो हँसली हुलसक हो रामजी

दाग दिल के देखाबे के मरजेंसी है
तनिको देखs पलटकs हो रामजी

गीत अनिमेष के शेष काने लगल
छन्द टूटल छनकक हो रामजी ।

....

कवि- भागवतशरण झा 'अनिमेष'
ईमेल- bhagawatsharanjha@gmail.com

कवि भागवत शरण झा 'अनेमेष' अपनी धर्मपत्नी के साथ

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