Thursday 5 October 2017

आ गेल ह त्योहार के मौसम / भागवतशरण झा 'अनिमेष'

 बज्जिका बसन्त -1 


आ गेल ह त्योहार के मौसम। असाढ़ के पहिला दिन से जे हिरदय हरियर

फोटो साभार - रमण वर्मा 
 भेल ऊ अब हरसिंगार हो रहल ह।एक के बाद एक त्योहार के झड़ी लगल है।अखनी त दुर्गापूजा के धूम मचल है। लगले हाथ दिवाली आ छठ भी अयबे करत। बहुत भक्तिभाव आ धूम-धाम से पूजा-पाठ चल रहल ह। एकदम एकोर गाँव से ले क रजधानी तक एक्के रँग में रंगायेल है। ध्वनि प्रदूषण भी चरम पर है।कनफाड़ू अवाज केतना मरीज के दम निकाल रहल ह। ...आब तनी बिसय पर आऊ। नवरात्र जइसन साधना वास्तविक साधना - अराधना के बिसय होए के चाही।ई आस्था के सवाल है।ई शोर-शराबा , बबाल आ देखाबा के चीज न है। एकइसवीं सदी में भी हमरा सिविक सेंस कहिया आएत ?


आयोजन के जगह पर सरधा बिसाल होए के चाही। दुर्गासप्तशती पुस्तक के सनेस कि है ? हमारा कनफाड़ू ध्वनिविस्तारक यन्त्र के जगह पर कर्णप्रिय स्वर में ध्वनिविस्तार करे कहिया आएत ? हम्मर उदेस बुधियार बने के न है।हम्मर उदेस परंपरागत खूबी के संजोये के है।हम्मर उदेस परंपरागत से लेके अभी तक के खराबी से पीछा छोरबाबे के है। संस्कृति में जे अपसंस्कृति घुस रहल ह , ओकरा पर रोक लगाबे के चाही।


( २)
अब देवारी आएत । देवारी ! रोसनी के परब । दीया -बत्ती के परब। ई में लोग रुपैया पानी के तरह बहैतन। दुस्मन चीन के 'मेड इन चाइना' समान खूब बिक्कत । फटाका ध्वनि प्रदूषण करत। वायु प्रदूषण भी। जुआ आ सराब भी चलबे करत। जेकरा पास जेतना धन है , ओतना ऊ ओतना तन क चलत । देखाबा खूब होएत। आज के जमाना में आज के सरोकार के बात कयल जाओ। समाजसेवा आ सहयोग के लेल धन खरच कयल जाओ। सादा जीवन आ उच्च विचार के बढ़ावा देल जाओ। धर्मान्ध आ धर्मभीरु न हो क धर्मपरायण होए के चाही। मातृशक्ति के समादर आ विकसित सोच के बढ़ावा जरूरी है। बहुत जगह बलि देल जाएत। धरम के मूल में करुणा होए के चाही। हिंसा , द्वेष , कट्टरता आ सामाजिक दुर्भाव के नाम धरम न है।भुतखेली के दौर भी चालू है। ई चालू रहत । ई केतना ठीक है ? ढोंग आ तथाकथित बाबा आ ओझा-गुनी से भी समाज के भारी खतरा है।वैज्ञानिक सोच के बिकसित अब न त कहिया करब ?

विजयादशमी के दिन है।सबतर खुशी के लहर है।दूध के बूथ के पास आशियाना -रामनगरी , पटना के दृश्य देखू।कलश-स्थापन के दिन से जे चलल संयम ओक्कर आज धज्जी उड़ रहल ह।मीट के दोकान पर खस्सी-छाग के कटाई ज़ारी है।खून से लथपथ है कसाई के ठेहा।कसाई बहुत बिजी है।माँ के परम वैष्णव भक्तसब के बीच मांसाहार के होड़ है। नौ दिन के नेम आ दसमा दिन के सबेरे-सबेरे से संयम के ठेंगा।आखिर मुखौटा उतरिये गेल। 

रावण- दहन के परम्परा है।आई सेहो निबहत।रावण त हमारा मोन में है, सोच में है , चाल-चलन में है, काम,क्रोध ,लोभ आ मोहादि में है।भीतर के रावण के मारल जाए। भ्रष्टाचार के रावण के वध कयल जाए। बलात्कारी के वध कयल जाए। देश के दुश्मन के वध कयल जाए।अशांति आ आतंकवाद के रावण पर कंट्रोल कयल जाए।शोषण आ भेदभाव रोकल जाए।केवल प्रतीक मात्र में परम्परागत रावण के मार क हमरा की प्राप्त होए
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Mo. 8986911256

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