Monday 11 December 2017

बज्जिका वसन्त - हरिनारायण सिंह 'हरि' की गज़ल / उप्पर मक्खन के चिकनाई भित्तर दूध फटल है

  गजल
 कवि- हरिनारायण सिंह 'हरि'



उप्पर मक्खन के चिकनाई भित्तर दूध फटल है 

मीठ -मीठ ई बात करिइअ, बाकी पेट सरल है 


एक्कर झांसा में मत आबऽ,ई तऽ पक्का नेता, 

सोना के कलसी में रक्खल ई तऽ मीठ गरल है 


केकरा पर विश्वास करू हम  केकरा अप्पन मानूं ,

रमनामी चद्दर के  निच्चा छूरी जहर बुझल है


हम्मर जिनगी चिरमुन्नी के  उजरल -पुजरल खोंता, 

अबहू तक अन्हर -बउखी से एकरा फेर परल है

उलट-पुलट आ झूठ-सांच के जे बेपार करइअ
भाई-भाई के फुटकाकऽ  ऊहे मेठ बनल है.
..................
कवि- हरिनारायण सिंह 'हरि'                        
संपर्क :जौनापुर, मोहीउद्दीननगर
समस्तीपुर  (बिहार )
मोबाइल व वाट्सैप -9771984355

1 comment:

  1. बात बाजौका भाषा बज्जिका तो बहुत सरल है,
    गाँव आँगन जैसी मधुरता मिज़ाज़ जबकि गरम है |

    बस तो वो उत्तेजना ही सही कथा भरल-पुरल है,
    माटिक सुगंध से परिपूर्ण कविता जो गज़ब है |

    माननीय, आपकी बातें काफी रमणीय प्रतीत हुई |

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