मिलन
मृदुल जी से मिलली।
मिलली तs मिलइते रsह गेली
बादल से किरिन जइसन
बिजुरी से चमक अइसन
चमक से गर्जना अइसन
कल्पना से सिरजन जइसन
इयाद आ गेल चाणक्य के एगो असलोक --
असलोक के ई अर्धाली पर बिलम गेली ...
अमृतं प्रियदर्शनम् ... !
समझ में आ गेल कि दू गो नद्दी के मिलन भी
अइसहीं होइत होएत !
भाव से भरल
भाव सन तरल
सहज आउर सरल
भूख के भोजन से
भोजन के संतुष्टि से
संतुष्टि के तृप्ति से
शब्द के अभिव्यक्ति
घास के हरिअरी से अइसने भेंट भेल होएत !
अप्पन मट्टी
अप्पन धरती
अप्पन बोली आ देसी टच के अदमी से
मिलली तs मिलइते रह गेली
भाव आ भजन बन कs
बहार आ चमन बन कs
राम आ रमन बन कs
जतरा आ गमन बन कs
वात्सल्य आ ललन बन कs
हे हरि ! हे नराएन !!
किरपा करइत रहू
कि बने अइसन संजोग
केहू से मिली
तs अइसहीं मिली
कि मिले के बाद
हिरदय के होरिल हुलसइत रहे
जिनगी भर ...!
अनंतकाल तक !!
.......
कवि - भागवत शरण झा 'अनिमेष'
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