Monday, 26 September 2022

मिलन (कवि - भागवतशरण झा 'अनिमेष)

मिलन 



    (मुकेश कुमार मृदुल के लेल ... ! )       
भागवतशरण झा 'अनिमेष '

मृदुल जी से मिलली।
मिलली तs मिलइते रsह  गेली
बादल से किरिन जइसन
बिजुरी से चमक अइसन
चमक से गर्जना अइसन
कल्पना से सिरजन जइसन
इयाद आ गेल चाणक्य के एगो असलोक --
असलोक के ई अर्धाली पर बिलम गेली ...
अमृतं प्रियदर्शनम् ... !
समझ में आ गेल कि दू गो नद्दी के मिलन भी
अइसहीं होइत होएत !
भाव से भरल
भाव सन तरल
सहज आउर सरल
भूख के भोजन से
भोजन के संतुष्टि से
संतुष्टि के तृप्ति से
शब्द के अभिव्यक्ति
घास के हरिअरी से अइसने भेंट भेल होएत !
अप्पन मट्टी 
अप्पन धरती
अप्पन बोली आ देसी टच के अदमी  से
मिलली तs मिलइते रह गेली 
भाव आ भजन बन कs
बहार आ चमन  बन कs
राम आ रमन बन कs
जतरा आ गमन बन कs
वात्सल्य आ ललन बन कs 
हे हरि ! हे नराएन !!
किरपा करइत रहू 
कि बने अइसन संजोग 
केहू से मिली 
तs अइसहीं मिली 
कि मिले के बाद 
 हिरदय के होरिल हुलसइत रहे
जिनगी भर ...!
अनंतकाल तक !!

.......

कवि - भागवत शरण झा 'अनिमेष'

प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

Tuesday, 23 July 2019

बज्जिका संवाद युक्त रपट - हरि के "हिन्दी गीत संग्रह- हुआ कठिन अब सच-सच लिखना" एवं बज्जिका "प्रबंधकाव्य- कर्ण" के लोकार्पण समस्तीपुर में 22.7.2019 के सम्पन्न

समाज में फइलल विसंगति पर गहरा चोट

(पूर्ण हिन्दी में पढ़िए - यहाँ क्लिक कीजिए / मुख्य पेज पर जाइये -  https://bejodindia.blogspot.com)



बज्जिका के विकास से हिन्दी के विकास में कोनो बाधा नऽ पड़त, बल्कि ऊ आउर समृद्ध होएत।" उक्त विचार हिन्दी और बज्जिका के ख्यात साहित्यकार डा ब्रह्मदेव प्रसाद कार्यी ने प्रकट किया। उन्होंने कहा," हरिनारायण सिंह 'हरि' हिन्दी आ बज्जिका के समर्थ साहित्यकार हतन। ऊ  अप्पन महाकाव्य 'कर्ण' के माध्यम से समाज में फइलल विसंगति पर करारा चोट कयलन हन। 

कविता कोश के उपनिदेशक और हिन्दी तथा अंगिका के सशक्त और समर्थ युवा साहित्यकार राहुल शिवाय ने कहा कि "कर्ण के प्रकाशन से बज्जिका साहित्य समृद्ध होयल हन । उन्होंने कहा कि "हरि एक साथ हिन्दी आ बज्जिका में अनवरत लिख रहलन हन आ अभी तक हिन्दी के कै गो कविता आ गीत संकलन के साथे-साथे दून्नू भाषा में एकइगो महाकाव्य के भी सृजन कर चुकलन हन।"

मैथिली के प्रसिद्ध कथाकर डा रवीन्द्र राकेश ने कवि हरि के  हिन्दी गीत संग्रह "हुआ कठिन अब सच-सच लिखना" की और बज्जिका के वरिष्ठ कवि और समीक्षक ज्वाला सांध्यपुष्प-'कर्ण' की लिखित समीक्षा प्रस्तुत की। बेगूसराय से पधारे कबीर और नागार्जुन की परम्परा के कवि  जनकवि दीनानाथ सुमित्र ने कहा हरि के गीतों का मैं फैन हो गया हूं। 

हिन्दी और बज्जिका की सभी विधाओं के सशक्त  और युवा साहित्यकार अश्विनी कुमार आलोक ने हरि के लेखन व उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं का विश्लेषण करते उनके अन्तःसंबंधों की व्याख्या की । ये सभी साहित्यकार सोमवार की देर शाम बिहार राज्य बज्जिका विकास परिषद् के स्थापना दिवस पर संस्कारम् एकेडमी बिनगामा (समस्तीपुर) व परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। 

शिक्षाविद जनक किशोर कापर की अध्यक्षता व साहित्यकार मृदुल के संचालन व पूर्व सैनिक नरेन्द्र कुमार राय के संयोजन में आयोजित  इस कार्यक्रम का आगाज नरेन्द्र कुमार राय लिखित स्वागत गीत को गाकर रूचि रानी, सुरुचि सुमन व खुशी प्रिया ने किया। बच्चियों ने हरि लिखित पटोरी गीत के ऑडियो पर भावनृत्य भी किया।

दीप -प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन के बाद आकाशवाणी-कलाकार राम सिंगार सिंह ने राग भोपाली में "वर दे वीणा वादिनी वर दे" गाकर सबको  मंत्रमुग्ध कर दिया। राजनेता मनोज कुमार सिंह व एक उच्च अधिकारी मनीष कुमार ने अंगवस्त्र से हरिनारायण सिंह 'हरि' को सम्मानित किया । राजनेता राजकपूर सिंह, प्राचार्य डॉ. घनश्याम राय, डॉ. रामागार प्रसाद, पर्यावरणसेवी सुजीत भगत, डॉ. सुरेन्द्र कुमार राय,  संतोष पोद्दार, विश्वनाथ राय, शरदेन्दु शरद, इंतखाब आलम, सकलदीप कुमार राय, अरविन्द सिंह, शैलेन्द्र सिंह आदि ने भी लोकार्पित पुस्तकों  व बज्जिका भाषा के उत्थान पर चर्चा की।

इस अवसर पर कृतिकार हरि तथा हरिनारायाण 'हरि' ने भी अपने विचारों को प्रकट किया अंत में नरेन्द्र कुमार राय ने धन्यवाद ज्ञापित किया । संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन बज्जिका के साहित्यकार मृदुल ने किया। 
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आलेख - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो 
स्रोत - हरिनारायण सिंह 'हरि'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

Wednesday, 10 July 2019

जइसे अकेल्ले में तोहर दुलार! / कवि - हरिनारायण सिंह 'हरि'

पावस गीत
(मुख्य पेज देखिए- https://bejodindia.blogspot.com/ हर 12 घंटों पर जरूर देखें- FB+ Watch Bejod India)


पिया रिमझिम फुहार, जइसे अकेल्ले में तोहर दुलार!

अरे, साओन के बरसा सरसावे जिया
रात आबे नऽ काहे तरसावे पिया
चाही बरसा में बालम के बहियाँ सिंगार ।
पिया रिमझिम फुहार, जइसे अकेल्ले में तोहर दुलार!

ठेहुना भर पानी आ पसरल है कादो
अखनी तऽ बचले है भर माह भादो 
आ काहे भींजइछऽ  लऽ धोती सँभार ।
पिया रिमझिम फुहार, जइसे अकेल्ले में तोहर दुलार!

घट्टा दुपट्टा में हम्मर ई मुखड़ा
केकरा से कहूं ई भित्तर के दुखड़ा
सुन जाएत गोतिया, पड़ोसी जेवार ।
पिया रिमझिम फुहार, जइसे अकेल्ले में तोहर दुलार!
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कवि - हरिनारायण सिंह 'हरि'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

वर्षा का दृश्य (चित्र श्री जीतेंद्र कुमार के वाल से साभार्)

(चित्र - साभार गूगल (बरसात का मौलिक चित्र भेजिए अपने नाम के साथ - editorbejodindia@yahoo.com)


Friday, 17 May 2019

पिया, फेसबुक में कबले हेराएल रहबऽ! / हरिनारायण सिंह 'हरि' के बज्जिका गीत और दोहा

बज्जिका गीत 



पिया, फेसबुक में कबले हेराएल रहबऽ!
आ किऽ हमरो के जियरा जुराएल करबऽ!

ई बैरिनिया मुआ मोबाइल सौतिन हमर बनल है ।
फेसबुकिया चिक्कन मउगी एकरा में बनल-ठनल है।
कहऽ,एकरे से नेहिया लगाएल करबऽ!
पिया, फेसबुक में कबले हेराएल रहबऽ!

टूटर,ऊटुब आउर कथी सब भरल -भरल मुखपोथी ।
गावे वाली,नाचेवाली,छउंरी सब मुँहचोथी ।
पियबा, एकरे में रमबऽ , भुलाएल रहबऽ! 
पिया, फेसबुक में कबले हेराएल रहबऽ!

आउर सतयबऽ,की -की करबऽ,निरदइया सइंया हो! 
छोड़ऽ ओकरा, हमरो देखऽ, परूं तोर पइंया हो! 
आ की अइसहीं तू रतिया बिताएल करबऽ !
पिया, फेसबुक में कबले हेराएल रहबऽ!
...


गरमी के दोहा

भेलइ अंत बसंत के, गरमी रितु आ गेल ।
जागे लागल भोरही, सूर्य स्वस्थ हो गेल ।१।

लत्ती, फल आ फलहरी, झुलसे लागल पेड़ ।
जेठ तबल सखि! एतना, पिया -मिलन में फेर ।२।

धरती लह-लह कर रहल, सुख्खल पोखर -ताल ।
बिनु पानी अब हो रहल,जीव-जंतु बेहाल ।३।

घट्टा के न अता-पता, निर्मल हइ आकाश ।
लोग पियासल नीर-बिन,रह-रह लगे तराश।४।

नीन न आबे रात भर, गरमी के नऽ अंत ।
हमरा असगर छोड़ कऽ, भगलन द्वारे कंत ।५।
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कवि - हरिनारायण सिंह 'हरि'
कवि  के मोबाइल - 9771984355
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

(बायीं ओर बैठे) हरिनारायण सिंह 'हरि' प्रख्यात लघुकथाकार सतीशराज पुष्करणा के साथ 

 (दायीं ओर बैठे)  हरिनारायण सिंह 'हरि' गीतकार हृदयेश्वर के साथ 






Saturday, 6 April 2019

हरिनारायण सिंह 'हरि के नयका बज्जिका प्रबंध काव्य 'कर्ण'


ज्जिका हम्मर माई के भाषा है । जइसे अप्पन माई के बिसर जनाई अथवा भुला देनाई ओक्कर प्रति कृतघ्नता होइय, ओसही अप्पन मातृभाषा के भुला के हम अप्पन जड़ से कट जाइछी । कर्ण के चरित्र पर तऽ हिन्दी आ अन्य भाषा में कै गो महाकाव्य, प्रबंधकाव्य, उपन्यास आदि लिख्खल गेल हन । हम्मर उनका चरित्र पर बज्जिका में लिखे के मकसद ई रहल हन कि बज्जिका में छंद के कइसे जुबान पर बइठायल जाय आ अप्पन सोच के कर्ण के पाठक के सामने लाएल जाय । 
(हरिनारायण सिंह 'हरि)

हरिनारायण सिंह 'हरि बज्जिका भाषा के कविता करे में बड़ा नाम है. उनकर एगो नयका प्रबंध काव्य आ रहल है बज्जिका भाषा में. एकरा जरूर पढिह.
- Bejod India blog

विशेष जानकारी हेतु - इहाँ क्लिक करs
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Saturday, 13 January 2018

बज्जिका लहर: लागे जाड़ न माघ - पूस में, लागे जब बहे बतास / कवि- मृदुल

   लागे जाड़ न माघ - पूस में, लागे जब बहे बतास

मृदुल 

लागे जाड़ न माघ - पूस में, लागे जब बहे बतास
इहे समइया जिनगी सिमटे घुरा बोरसी के पास 

          सरदी बढ़े एत्ता जे से
          नाक से टपटप चूये नेटा
          कुत्ता - गीदड़ हबके - झबके
          हाथ पकड़े पड़े सोंटा
धीओ - पुता तंग करइअ, लेबे न देइय तनको सांस

          तमाकुल के खेत न कट्टल
          सब्भे कुछ है ओझराएल
          पोसिया माल के दूध न उतरल
          कइसे जाय फरियाएल
दुब्भी -मोथा, ठरकल - ठिहुकल, खाली मिले फुलहर कास

          फुला रहल हन गहूम - खेसारी
          है झबरल रहरी, सरसो
          बचा लीअहू भगवान हे एकरा
          देख न कोई तरसो
एकरे पर महाजन सब्भे, इहे पर घर भर के आस

          एतने में दऽ संस बऽरक्कत
          धीआ - पुता आगे बढ़े
          ऊब्बड़ - खाब्बड़, सूख्खल - भींगल
           उ सब सीढ़ी पर पहिले चढ़े
बहे केतनो अन्हर - बउखी, न टूटे जिनगी के रास.
......
कवि - मृदुल 
संपर्क :- साहित्य निकेतन, रसलपुर, बघड़ा, समस्तीपुर (बिहार) पिन - 848506
मोबाइल - 9939460183, 7677568899
इमेल mridulsahitya@gmail.com,  mukeshkumarmridul@gmail.com
प्रतिक्रया इहो ईमेल पर भेज सके हS -  hemantdas_2001@yahoo.com







Monday, 25 December 2017

कविता- लोर झरे लगल तs झरते रहल / भागवतशरण झा 'अनेमेष'

लोर झरे लगल ..! 
 कवि- भागवतशरण झा 'अनिमेष '

लोर झरे लगल तs झरते रहल
रात तीतल सिहर कs हो रामजी

मोन बाछा अनेरुआ हहरइत रहल
हाल बेहाल बेधलक हो रामजी

नाम जेकरा हम जब तब जपते रही
हमरा छोरलक छमककs हो रामजी

बयना तकलीफ के हमरा सुख से मिलल
तइयो हँसली हुलसक हो रामजी

दाग दिल के देखाबे के मरजेंसी है
तनिको देखs पलटकs हो रामजी

गीत अनिमेष के शेष काने लगल
छन्द टूटल छनकक हो रामजी ।

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कवि- भागवतशरण झा 'अनिमेष'
ईमेल- bhagawatsharanjha@gmail.com

कवि भागवत शरण झा 'अनेमेष' अपनी धर्मपत्नी के साथ