गजल
कवि- हरिनारायण सिंह 'हरि'
उप्पर मक्खन के चिकनाई भित्तर दूध फटल है
मीठ -मीठ ई बात करिइअ, बाकी पेट सरल है
एक्कर झांसा में मत आबऽ,ई तऽ पक्का नेता,
सोना के कलसी में रक्खल ई तऽ मीठ गरल है
केकरा पर विश्वास करू हम केकरा अप्पन मानूं ,
रमनामी चद्दर के निच्चा छूरी जहर बुझल है
हम्मर जिनगी चिरमुन्नी के उजरल -पुजरल खोंता,
अबहू तक अन्हर -बउखी से एकरा फेर परल है
उलट-पुलट आ झूठ-सांच के जे बेपार करइअ
भाई-भाई के फुटकाकऽ ऊहे मेठ बनल है.
उलट-पुलट आ झूठ-सांच के जे बेपार करइअ
भाई-भाई के फुटकाकऽ ऊहे मेठ बनल है.
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कवि- हरिनारायण सिंह 'हरि'
संपर्क :जौनापुर,
मोहीउद्दीननगर
समस्तीपुर (बिहार )
मोबाइल व वाट्सैप
-9771984355
बात बाजौका भाषा बज्जिका तो बहुत सरल है,
ReplyDeleteगाँव आँगन जैसी मधुरता मिज़ाज़ जबकि गरम है |
बस तो वो उत्तेजना ही सही कथा भरल-पुरल है,
माटिक सुगंध से परिपूर्ण कविता जो गज़ब है |
माननीय, आपकी बातें काफी रमणीय प्रतीत हुई |